Trump Bagram Air Base Afghanistan has once again become a hot topic in global geopolitics after US President Donald Trump declared that Washington is working to reclaim the strategic air base. Trump highlighted its proximity to China’s nuclear weapons facilities, calling it a bold and necessary move. The statement has sparked strong reactions from China, the Taliban, Russia, and regional analysts.

Trump Bagram Air Base Afghanistan
दुनिया की राजनीति एक बार फिर से गर्म हो गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यह कहकर हलचल मचा दी कि अमेरिका अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस वापस पाना चाहता है। ट्रम्प का कहना है कि यह बेस चीन के न्यूक्लियर हथियार केंद्रों से महज एक घंटे की दूरी पर है और इसलिए रणनीतिक रूप से अमेरिका के लिए बेहद अहम है।
बगराम एयरबेस का इतिहास
- शुरुआत: बगराम एयरफील्ड 1950 के दशक में सोवियत मदद से बना था।
- सोवियत-अफगान युद्ध (1979-89): सोवियत सेना ने इसे प्रमुख सैन्य ठिकाने के रूप में इस्तेमाल किया।
- अमेरिकी हस्तक्षेप (2001): 9/11 हमलों के बाद अमेरिका ने इसे अपना सबसे बड़ा एयरबेस बनाया।
- 2001–2021: यहां से नाटो और अमेरिकी सेनाओं ने पूरे अफगानिस्तान में ऑपरेशन चलाए।
- 2021 वापसी: बाइडेन सरकार के आदेश पर अमेरिकी सैनिक रातोंरात यहां से हटे और तालिबान ने इसे कब्जे में ले लिया।
👉 यानी यह एयरबेस सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि 20 साल की अमेरिकी मौजूदगी का प्रतीक है।
ट्रम्प का बयान – “हमें यह बेस वापस चाहिए”
लंदन में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रम्प बोले:
“हम बगराम एयरबेस को वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं। यह एक बड़ी खबर है। हमें यह बेस इसलिए चाहिए क्योंकि अफगानिस्तान को भी हमसे कई चीज़ें चाहिए। और यह बेस चीन के परमाणु हथियार उत्पादन स्थलों से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर है।”
इस बयान से साफ है कि ट्रम्प की नज़रें सीधे चीन पर हैं।
अमेरिकी कांग्रेस का समर्थन
- अमेरिकी संसद (Congress) के कई नेताओं ने ट्रम्प का समर्थन किया।
- उनका कहना है कि बगराम पर अमेरिका की वापसी रणनीतिक रूप से “सही और ज़रूरी” है।
- उनके अनुसार, यह कदम चीन और रूस दोनों के खिलाफ अमेरिका की पकड़ मज़बूत करेगा।
चीन की प्रतिक्रिया – “अफगानिस्तान का भविष्य अफगानों का”
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा:
- “चीन अफगानिस्तान की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करता है।”
- “भविष्य का फैसला अफगान जनता को करना चाहिए।”
- “क्षेत्रीय तनाव को हवा देना किसी के लिए भी अच्छा नहीं है।”
👉 साफ है कि बीजिंग नहीं चाहता कि अमेरिका फिर से उसके पड़ोस में सैन्य उपस्थिति बनाए।
अफगानिस्तान का रुख
विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी:
- “अफगानिस्तान की ज़मीन का एक इंच भी विदेशी फौज के लिए स्वीकार्य नहीं।”
- “हम केवल राजनीतिक और आर्थिक जुड़ाव चाहते हैं।”
विदेश मंत्रालय के अधिकारी जाकिर जलाली:
- “अफगानों ने कभी विदेशी सैन्य उपस्थिति नहीं मानी।”
- “दोहा समझौते में यह साफ किया गया है।”
👉 यानी तालिबान साफ है – विदेशी सैन्य ठिकाने को किसी कीमत पर इजाज़त नहीं।
रूस की चिंता
- रूस ने हाल के महीनों में कई बार कहा है कि अमेरिका की अफगानिस्तान में वापसी से क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ेगी।
- मास्को को डर है कि इससे मध्य एशिया और रूस की सुरक्षा पर असर पड़ेगा।
भारत और पाकिस्तान पर असर
भारत के लिए:
- अमेरिका की मौजूदगी भारत को चीन-पाकिस्तान गठजोड़ के खिलाफ रणनीतिक सहारा दे सकती है।
- लेकिन अगर तालिबान असंतुष्ट हुआ, तो भारत की निवेश परियोजनाएँ खतरे में पड़ सकती हैं।
पाकिस्तान के लिए:
- पाकिस्तान को डर है कि अमेरिका की वापसी उसके ऊपर दबाव बढ़ा सकती है।
- वहीं चीन-पाक साझेदारी पर भी इसका असर हो सकता है।
निक्की हेली का आरोप – “चीन पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है”
अमेरिकी पूर्व राजनयिक निक्की हेली ने कहा कि:
- चीन बगराम एयरबेस पर कब्जा करने की योजना बना रहा है।
- पाकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है।
- अमेरिका को जल्द कदम उठाने चाहिए।
बाइडेन बनाम ट्रम्प – नीति में अंतर
- बाइडेन सरकार (2021): अफगानिस्तान से पूरी तरह वापसी, “Endless War” खत्म करने पर जोर।
- ट्रम्प (2025): अफगानिस्तान में दोबारा सैन्य मौजूदगी की बात, खासकर चीन पर दबाव बनाने के लिए।
👉 यही नीति बदलाव आज वैश्विक बहस का कारण बना है।
भू-राजनीतिक महत्व
- चीन पर दबाव – बगराम एयरबेस चीन के शिनजियांग क्षेत्र के नजदीक है।
- भारत की सुरक्षा – अगर अमेरिका लौटता है तो भारत को कूटनीतिक ताकत मिल सकती है।
- तालिबान का रुख – तालिबान राजनीतिक और आर्थिक जुड़ाव चाहता है, सैन्य नहीं।
- रूस-ईरान की चिंता – दोनों अमेरिका की वापसी को अपने खिलाफ मानते हैं।
क्या अमेरिका लौट पाएगा?
- यह तालिबान की सहमति और चीन-रूस की प्रतिक्रिया पर निर्भर है।
- आर्थिक सौदेबाजी की संभावना है, लेकिन तालिबान अब तक सख्त रुख दिखा रहा है।
- अगर अमेरिका वापसी की कोशिश करता है, तो क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
ट्रम्प का बयान दुनिया के लिए नई भू-राजनीतिक चुनौती लेकर आया है।
- अमेरिका इसे चीन पर दबाव बनाने का हथियार मानता है।
- चीन और रूस इसे क्षेत्रीय अस्थिरता की जड़ बताते हैं।
- तालिबान विदेशी सैन्य उपस्थिति को पूरी तरह खारिज करता है।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका अपनी योजना को कितना आगे बढ़ा पाता है और अफगानिस्तान इस दबाव का सामना कैसे करता है।




