Palestine Recognition marks a historic turning point in global diplomacy as 150 UN nations, including the UK, Canada, Australia, and Portugal, extend support. This recognition challenges US foreign policy and reshapes the future of the Israel–Palestine conflict.

Palestine Recognition: UK, Canada, Australia, and Portugal Backed by 150 Nations at UN
22 सितंबर, 2025 – अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक भूकंपीय बदलाव आया है जब चार प्रमुख पश्चिमी देशों ने एक साथ फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने की घोषणा की है। यह फैसला न केवल मध्य पूर्व की राजनीति को प्रभावित करेगा बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गया है।
कौन से देशों ने दी फिलिस्तीन को मान्यता?
रविवार को चार देशों का एकसाथ निर्णय:
- ब्रिटेन – प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर का ऐतिहासिक फैसला
- कनाडा – प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की घोषणा
- ऑस्ट्रेलिया – प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज का समर्थन
- पुर्तगाल – यूरोपीय संघ में महत्वपूर्ण कदम
सोमवार को अन्य देशों का जुड़ना: फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, माल्टा और मोनाको ने भी UN जनरल असेंबली में अपनी मान्यता की घोषणा की।
वैश्विक समर्थन का व्यापक दायरा
आज दुनिया के 193 देशों में से लगभग 150 देश (75% से अधिक) फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मानते हैं। यह संख्या UN सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से चार (चीन, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन) के समर्थन को दर्शाती है। केवल अमेरिका इस मान्यता का विरोध कर रहा है।
इजराइल की तीखी प्रतिक्रिया
इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इन देशों के फैसले पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है:
“मैं उन नेताओं के लिए स्पष्ट संदेश है जो 7 अक्टूबर के भयानक नरसंहार के बाद फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता दे रहे हैं: आप आतंकवाद को बड़ा पुरस्कार दे रहे हैं।”
नेतन्याहू ने यह भी घोषणा की कि “अब कोई फिलिस्तीनी राज्य नहीं होगा” और जॉर्डन नदी के पश्चिम में (वेस्ट बैंक) इजराइली बस्तियों का विस्तार तेज किया जाएगा।
ट्रंप के साथ “धोखा”? – राजनीतिक पृष्ठभूमि
यह फैसला विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन देशों द्वारा लिया गया है जो परंपरागत रूप से अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगी हैं:
ब्रिटेन की राजनीतिक पृष्ठभूमि
- कीर स्टार्मर के खिलाफ हाल ही में हुए प्रदर्शन
- एलन मस्क, ट्रंप और जेडी वेंस का स्टार्मर विरोधी आंदोलन को समर्थन
- 54% ब्रिटिश नागरिक स्टार्मर के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं
- स्टार्मर पर आरोप कि उन्होंने मुस्लिम अप्रवासी मतों से जीत हासिल की
ट्रंप की ब्रिटेन यात्रा और टकराव
18 सितंबर को ट्रंप की ब्रिटेन यात्रा के दौरान स्टार्मर ने ट्रंप की उपस्थिति में ही फिलिस्तीन को मान्यता देने की घोषणा की। यह कदम एक स्पष्ट संदेश था कि ब्रिटेन अमेरिकी दबाव में नहीं आएगा।
ऐतिहासिक संदर्भ: बेलफोर्ड घोषणा से आज तक
ब्रिटिश भूमिका का उलटफेर
- 1917 में बेलफोर्ड घोषणा: ब्रिटेन ने यहूदियों को अलग राष्ट्र का वादा किया
- 1948: फिलिस्तीन में इजराइल राष्ट्र की स्थापना
- आज: वही ब्रिटेन फिलिस्तीन को मान्यता दे रहा है
यह एक ऐतिहासिक विडंबना है कि जिस ब्रिटेन ने कभी इजराइल की स्थापना में मदद की थी, वही आज फिलिस्तीन के समर्थन में खड़ा है।
गाजा संकट और मानवीय आधार
फिलिस्तीन को मान्यता देने के पीछे गाजा में मानवीय संकट एक प्रमुख कारण है:
गाजा की वर्तमान स्थिति
- 7 अक्टूबर 2023 से शुरू हुए संघर्ष के बाद गाजा की व्यापक तबाही
- 65,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए (स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार)
- इजराइली हमलों में अस्पताल और स्कूल भी निशाना
- 3 लाख से अधिक फिलिस्तीनियों को गाजा सिटी छोड़ने पर मजबूर
हमास और भविष्य की सरकार
मान्यता देने वाले देशों ने स्पष्ट किया है:
- हमास को आतंकी संगठन माना जाता है
- भविष्य की फिलिस्तीनी सरकार में हमास की कोई भूमिका नहीं
- सभी बंधकों की रिहाई आवश्यक
- एक निरस्त्रीकृत फिलिस्तीनी राज्य की परिकल्पना
भारत की स्थिति: द्विराष्ट्र समाधान का समर्थक
भारत उन शुरुआती देशों में से एक है जो द्विराष्ट्र समाधान (Two-State Solution) का समर्थन करता है। भारत की नीति:
- इजराइल और फिलिस्तीन दोनों के अस्तित्व का समर्थन
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की वकालत
- मानवीय आधार पर फिलिस्तीनी अधिकारों का समर्थन
UN में फिलिस्तीन की स्थिति
वर्तमान दर्जा
- फिलिस्तीन पर्यवेक्षक राष्ट्र (Observer Nation) का दर्जा
- बोलने का अधिकार है, मतदान का अधिकार नहीं
- पूर्ण सदस्यता के लिए सुरक्षा परिषद की सहमति आवश्यक
पूर्ण सदस्यता की चुनौतियां
- 15 में से 9 सुरक्षा परिषद सदस्यों की सहमति चाहिए
- किसी भी स्थायी सदस्य का वीटो नहीं होना चाहिए
- अमेरिका के वीटो की संभावना बनी रहती है
इजराइली बस्तियों का विस्तार
नेतन्याहू सरकार की आक्रामक बस्ती नीति:
- वेस्ट बैंक में 7 लाख इजराइली बसने वाले
- अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अवैध बस्तियां
- E1 प्रोजेक्ट: वेस्ट बैंक को दो हिस्सों में बांटने वाली बस्तियां
- फिलिस्तीनी भूमि पर नियंत्रण बढ़ाने की रणनीति
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
यूरोपीय एकजुटता
- फ्रांस UN जनरल असेंबली में घोषणा करेगा
- बेल्जियम, लक्जमबर्ग, माल्टा का समर्थन
- यूरोपीय संघ के भीतर बढ़ता समर्थन
अरब जगत का रुख
- कतर ने सभी समर्थक देशों का धन्यवाद किया
- सऊदी अरब फ्रांस के साथ मिलकर शिखर सम्मेलन आयोजित
- अरब लीग का व्यापक समर्थन
इटली में व्यापक प्रदर्शन
- 80 से अधिक शहरों में फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शन
- श्रमिक संघों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल
- इजराइल को हथियार सप्लाई रोकने की मांग
ट्रंप प्रशासन की चुनौतियां
राजनयिक अलगाव
- G7 देशों में ब्रिटेन-कनाडा का अलग रुख
- NATO सहयोगियों का विरोध
- अमेरिकी प्रभाव में कमी
UN जनरल असेंबली में टकराव
- 23-29 सितंबर तक UNGA का 80वां सत्र
- ट्रंप और विश्व नेताओं की द्विपक्षीय वार्ता
- फिलिस्तीन मुद्दे पर अमेरिकी अलगाव
भविष्य की संभावनाएं
द्विराष्ट्र समाधान की राह
- व्यावहारिक कार्यान्वयन की चुनौतियां
- इजराइली बस्तियों का विस्तारवादी एजेंडा
- हमास के बिना फिलिस्तीनी शासन की संभावना
गाजा पुनर्निर्माण
- मिस्र युद्धविराम के बाद पुनर्निर्माण सम्मेलन आयोजित करेगा
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से वित्तीय सहायता
- दीर्घकालीन स्थिरता के लिए योजना
आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव
तेल राजनीति पर असर
- खाड़ी देशों की बढ़ती भूमिका
- ऊर्जा सुरक्षा के नए समीकरण
- अमेरिकी प्रभाव में संभावित कमी
वैश्विक व्यापार पर प्रभाव
- मध्य पूर्वी व्यापारिक मार्गों की स्थिति
- यूरोपीय संघ की नई विदेश नीति
- चीन-रूस की बढ़ती भूमिका
मीडिया और जनमत
पश्चिमी मीडिया में बदलाव
- गाजा संकट की व्यापक कवरेज
- मानवाधिकार संगठनों की आलोचना
- युवाओं में बढ़ता फिलिस्तीन समर्थन
सोशल मीडिया की भूमिका
- एलन मस्क जैसी हस्तियों का प्रभाव
- ऑनलाइन कैंपेन और जागरूकता
- सूचना युद्ध की नई रणनीति
निष्कर्ष: एक नया युग?
फिलिस्तीन को मान्यता देने का यह ऐतिहासिक फैसला केवल एक राजनयिक घोषणा नहीं है। यह उस नई विश्व व्यवस्था का संकेत है जहां अमेरिकी एकाधिकार को चुनौती मिल रही है।
मुख्य बिंदु:
- 150 देशों का फिलिस्तीन को समर्थन
- ट्रंप प्रशासन का राजनयिक अलगाव
- गाजा संकट से उपजी मानवीय चेतना
- द्विराष्ट्र समाधान की नई संभावनाएं
यह घटनाक्रम दिखाता है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अब न्याय और मानवाधिकारों के आधार पर फैसले ले रहा है, न कि केवल भू-राजनीतिक दबाव के कारण। आने वाले दिनों में UN जनरल असेंबली में होने वाली घटनाएं इस मुद्दे की दिशा तय करेंगी।
भारत की भूमिका इस संदर्भ में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि वह लंबे समय से द्विराष्ट्र समाधान का समर्थन करता आया है और मध्य पूर्व की शांति में सकारात्मक योगदान दे सकता है।




