Afghan Foreign Minister Muttaqi Press Conference Controversy ने भारत में बड़ी कूटनीतिक बहस छेड़ दी है। इस Afghan Foreign Minister Muttaqi Press Conference Controversy पर भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि इस प्रेस वार्ता में उसका कोई भी शामिल होना नहीं था।

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Afghan Foreign Minister Muttaqi Press Conference Controversy
नई दिल्ली में अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस से शुरू हुआ विवाद
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी (Mawlawi Amir Khan Muttaqi) की नई दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस शुक्रवार (10 अक्टूबर 2025) को विवादों में घिर गई।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से महिला पत्रकारों को बाहर रखने के आरोप सामने आए, जिसके बाद भारत में राजनीतिक और सामाजिक हलकों में जमकर प्रतिक्रिया देखने को मिली।
भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने अगले दिन यानी शनिवार (11 अक्टूबर) को बयान जारी करते हुए स्पष्ट कहा कि उसका इस Afghan Foreign Minister Muttaqi Press Conference Controversy से कोई लेना-देना नहीं था।
🗣️ MEA का आधिकारिक बयान – “हमारा कोई संबंध नहीं”
MEA ने इस विवाद पर संक्षिप्त लेकिन स्पष्ट बयान जारी किया:
“MEA का कल दिल्ली में अफगान विदेश मंत्री द्वारा आयोजित प्रेस इंटरैक्शन से कोई संबंध नहीं था।”
मंत्रालय के इस बयान से साफ है कि यह प्रेस मीट अफगानिस्तान दूतावास द्वारा आयोजित की गई थी और इसमें पत्रकारों को बुलाने या बाहर रखने का फैसला तालिबान अधिकारियों ने लिया था जो मुत्ताकी के साथ आए थे।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह MEA द्वारा आयोजित आधिकारिक प्रेस ब्रीफिंग नहीं थी, बल्कि मुत्ताकी के दौरे से जुड़ा एक “अलग मीडिया इंटरैक्शन” था।
💬 विवाद की शुरुआत कैसे हुई?
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मुत्ताकी भारत यात्रा पर आए थे, जहां उन्होंने विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के साथ द्विपक्षीय वार्ता की।
वार्ता के बाद दोनों देशों की ओर से कोई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की गई, बल्कि अफगानिस्तान दूतावास में मुत्ताकी की ओर से एक अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई।
इसी दौरान, कई भारतीय महिला पत्रकारों को यह सूचना मिली कि उन्हें प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई।
कुछ मीडिया संस्थानों ने इसे “महिलाओं के खिलाफ भेदभाव” करार दिया।
इस खबर के सामने आते ही #MuttaqiControversy और #WomenJournalists जैसे हैशटैग सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगे।
🔹 प्रियंका गांधी का बयान – “यह भारत की सक्षम महिलाओं का अपमान”
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया दी।
उन्होंने कहा कि यह घटना भारत की प्रतिष्ठा पर धब्बा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को इस पर जवाब देना चाहिए।
“यह घटना भारत की सबसे सक्षम और मेहनती महिला पत्रकारों का अपमान है। अगर प्रधानमंत्री जी की महिलाओं के अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता सिर्फ चुनावी दिखावा नहीं है, तो इस अपमान की अनुमति हमारे देश में कैसे दी गई?” – प्रियंका गांधी वाड्रा
प्रियंका गांधी ने यह भी कहा कि भारत को महिलाओं के समान अधिकारों का वैश्विक उदाहरण बनना चाहिए, लेकिन यह घटना उस दिशा में एक पीछे हटने वाला कदम है।
🔹 चिदंबरम बोले – “पुरुष पत्रकारों को बाहर निकल जाना चाहिए था”
पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिला पत्रकारों को बाहर रखा गया, और पुरुष पत्रकारों को इसका विरोध करना चाहिए था।
“मैं स्तब्ध हूं कि महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर रखा गया। मेरे विचार में पुरुष पत्रकारों को अपनी महिला सहयोगियों के समर्थन में प्रेस मीट छोड़ देनी चाहिए थी।”
चिदंबरम ने इसे पत्रकारिता की गरिमा और समानता पर हमला बताया।
🔹 विपक्ष ने केंद्र सरकार पर साधा निशाना
कांग्रेस के अलावा कई विपक्षी दलों ने भी केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा कि भारत की धरती पर आयोजित किसी भी कार्यक्रम में महिलाओं के साथ भेदभाव स्वीकार्य नहीं है, चाहे वह किसी विदेशी प्रतिनिधि द्वारा ही क्यों न किया गया हो।
कुछ नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ की याद दिलाते हुए कहा कि एक तरफ सरकार संसद में महिलाओं के सम्मान की बात करती है और दूसरी ओर अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी प्रेस कॉन्फ्रेंस विवाद जैसी घटनाओं पर मौन साध लेती है।
🔹 तालिबान का महिलाओं के प्रति रवैया
तालिबान सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति बेहद खराब हो गई है।
महिलाओं को उच्च शिक्षा, नौकरी, खेलकूद और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी से वंचित रखा जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र और कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने तालिबान की इन नीतियों की आलोचना की है।
अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी से जब इस मुद्दे पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा:
“हर देश के अपने कानून, रीति-रिवाज और परंपराएं होती हैं, और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।”
उनका यह जवाब एक तरह से महिलाओं पर जारी प्रतिबंधों का बचाव माना गया।
🔹 अफगानिस्तान दूतावास का बयान
अफगानिस्तान दूतावास की ओर से कहा गया कि यह प्रेस कॉन्फ्रेंस सुरक्षा कारणों और सीमित जगह के कारण केवल कुछ पत्रकारों के लिए आयोजित की गई थी।
हालांकि, इस दावे को मीडिया जगत में स्वीकार नहीं किया गया, क्योंकि अधिकतर पत्रकारों ने कहा कि केवल महिला रिपोर्टर्स को ही प्रवेश से रोका गया था।
🔹 भारत की मुश्किल स्थिति
भारत और अफगानिस्तान के संबंध हमेशा से रणनीतिक और मानवीय दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे हैं।
लेकिन तालिबान शासन के आने के बाद भारत एक राजनयिक दुविधा (Diplomatic Dilemma) का सामना कर रहा है।
भारत अफगान जनता के साथ सहयोग जारी रखना चाहता है, लेकिन तालिबान के मानवीय अधिकारों पर रिकॉर्ड को लेकर खुलकर समर्थन भी नहीं दे सकता।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस विवाद ने भारत की स्थिति को और जटिल बना दिया है, क्योंकि यह घटना दिल्ली में भारत की भूमि पर हुई।
🔹 महिलाओं के अधिकारों पर भारत की भूमिका
भारत विश्व मंचों पर हमेशा महिलाओं की समानता, शिक्षा और सुरक्षा की वकालत करता रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के “महिला सशक्तिकरण मंच” में भी भारत ने कई बार कहा कि लिंग आधारित भेदभाव अस्वीकार्य है।
ऐसे में यह घटना भारत की छवि पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल खड़े करती है, क्योंकि एक ऐसे देश के प्रतिनिधि ने भारत में कार्यक्रम के दौरान महिलाओं को बाहर रखा जो खुद महिलाओं पर कठोर प्रतिबंध लगाता है।
🔹 मीडिया समुदाय की प्रतिक्रिया
भारत के पत्रकार समुदाय ने इस घटना की कड़ी निंदा की।
Editors Guild of India, Press Club of India, और कई महिला पत्रकारों के संगठनों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समान अवसर के खिलाफ बताया।
कई वरिष्ठ संपादकों ने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ऐसा व्यवहार अस्वीकार्य और शर्मनाक है।
कुछ प्रमुख चैनलों ने अपने पुरुष संवाददाताओं को प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर बुलाने का भी निर्णय लिया।
🔹 अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र महिला आयोग (UN Women) और ब्रिटिश दूतावास ने भी इस घटना पर टिप्पणी की।
उन्होंने कहा कि महिला पत्रकारों को बाहर रखना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
अमेरिकी दूतावास ने भी कहा कि “पत्रकारिता में समान भागीदारी” एक मौलिक लोकतांत्रिक अधिकार है और इसे किसी भी परिस्थिति में सीमित नहीं किया जा सकता।
🔹 विशेषज्ञों की राय
राजनयिक विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को भविष्य में ऐसे मामलों के लिए स्पष्ट प्रोटोकॉल तैयार करना चाहिए।
जब भी कोई विदेशी प्रतिनिधिमंडल प्रेस इंटरैक्शन आयोजित करे, तो यह सुनिश्चित होना चाहिए कि सभी पत्रकारों को समान अवसर मिले।
पूर्व राजनयिक राजीव भटनागर ने कहा:
“अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी प्रेस कॉन्फ्रेंस विवाद ने यह दिखाया कि भारत को अपने मेजबान अधिकारों का प्रयोग करते हुए ऐसे भेदभाव की अनुमति नहीं देनी चाहिए।”
🔹 निष्कर्ष: भारत में महिलाओं के सम्मान पर फिर उठा प्रश्न
अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी प्रेस कॉन्फ्रेंस विवाद केवल एक राजनयिक घटना नहीं, बल्कि यह महिलाओं के सम्मान, समानता और अभिव्यक्ति के अधिकार से जुड़ा प्रश्न बन गया है।
जहां एक ओर भारत दुनिया को “नारी शक्ति” की प्रेरणा देता है, वहीं दूसरी ओर अपनी राजधानी में महिलाओं को प्रेस मीट से बाहर रखा जाना गंभीर विरोधाभास पैदा करता है।
सरकार का यह कहना कि “MEA का कोई संबंध नहीं था” तकनीकी रूप से सही हो सकता है, लेकिन नैतिक रूप से भारत की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती।
देश के नागरिक और मीडिया अब उम्मीद कर रहे हैं कि भारत इस तरह की घटनाओं पर स्पष्ट नीति और कड़ा रुख अपनाएगा, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न दोहराई जाएं।
❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी प्रेस कॉन्फ्रेंस विवाद क्या है?
उत्तर: अफगान विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी की नई दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस विवादों में आ गई जब महिला पत्रकारों को कार्यक्रम में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। इस घटना के बाद भारत में राजनीतिक दलों और मीडिया समुदाय ने तीखी आलोचना की।
2. क्या भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) का इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से कोई संबंध था?
उत्तर: नहीं। MEA ने स्पष्ट किया कि अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी प्रेस कॉन्फ्रेंस विवाद में उसका कोई हाथ नहीं था। यह कार्यक्रम अफगानिस्तान दूतावास द्वारा आयोजित किया गया था और भारत सरकार इसमें शामिल नहीं थी।
3. महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस से क्यों बाहर रखा गया?
उत्तर: रिपोर्ट्स के अनुसार, पत्रकारों की सूची तालिबान अधिकारियों ने तय की थी, और उसी निर्णय के तहत महिला पत्रकारों को बाहर रखा गया। इस फैसले पर तालिबान के महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
4. इस विवाद पर प्रियंका गांधी वाड्रा ने क्या कहा?
उत्तर: कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि यह घटना “भारत की सबसे सक्षम महिलाओं का अपमान” है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस पर जवाब देना चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि भारत में ऐसी घटना कैसे होने दी गई।
5. पी. चिदंबरम ने इस विवाद पर कैसी प्रतिक्रिया दी?
उत्तर: पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने X (ट्विटर) पर लिखा कि पुरुष पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस का बहिष्कार करना चाहिए था, क्योंकि महिला पत्रकारों को बाहर रखना समानता और सम्मान के खिलाफ है।
6. तालिबान का महिलाओं के प्रति रवैया क्या है?
उत्तर: तालिबान शासन ने अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा, नौकरी और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र ने इसे गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन बताया है।
7. क्या इस घटना का भारत-अफगान संबंधों पर असर पड़ेगा?
उत्तर: विशेषज्ञों के अनुसार, यह घटना भारत की छवि पर असर डाल सकती है, क्योंकि यह भारतीय धरती पर हुई। हालांकि, भारत ने स्पष्ट किया है कि यह प्रेस कॉन्फ्रेंस अफगानिस्तान दूतावास की स्वतंत्र गतिविधि थी।
8. अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी ने महिलाओं के मुद्दे पर क्या कहा?
उत्तर: जब उनसे अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि “हर देश के अपने कानून और परंपराएं होती हैं” और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। इसे कई लोगों ने महिलाओं के अधिकारों से जुड़े सवाल से बचने के रूप में देखा।
9. क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए भारत कोई कदम उठाएगा?
उत्तर: राजनयिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को ऐसे मामलों में स्पष्ट प्रोटोकॉल बनाना चाहिए ताकि किसी विदेशी प्रतिनिधिमंडल द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में सभी पत्रकारों को समान अवसर मिले और लिंग आधारित भेदभाव न हो।
10. इस विवाद से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर: यह विवाद भारत की महिला-सशक्तिकरण की छवि पर नकारात्मक असर डाल सकता है। दुनिया में भारत को नारी सम्मान का प्रतीक माना जाता है, इसलिए ऐसी घटनाएं भारत की लोकतांत्रिक और समानता की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचा सकती हैं।




